खाने पीने की चीजों से बनने वाले घर अब केवल किस्से-कहानियों में नहीं बल्कि हकीकत की दुनिया में भी मिलेंगे

जापानी शोधकर्ता कोटा माचिदा और युया सकाई ने फ़ूड वेस्ट को "सीमेंट" में बदलने के लिए एक तकनीक विकसित की है, जिसके बारे में उनका कहना है कि फ़ूड वेस्ट यानि खाद्य अपशिष्ट से सीमेंट बनाने की दुनिया की पहली प्रक्रिया है। इन शोधकर्ता के अनुसार उनका उत्पाद सामान्य कंक्रीट की तुलना में लगभग चार गुना अधिक मजबूत है।

Two Japanese researchers make food waste cement

दुनिया भर में खाने की बेइंतिहा बर्बादी एक बहुत बड़ी समस्या है, बीते साल पूरी दुनिया में अनुमानित रूप से 93.10 करोड़ टन खाना बर्बाद हुआ, जो वैश्विक स्तर पर कुल खाने का 17 फीसदी है

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय घरों में हर साल करीब 6.87 करोड़ टन खाना हर साल बर्बाद हो जाता है, दुनिया भर में बर्बाद हो रहे खाद्य पदार्थो के कारण उत्पन्न हो रहे फ़ूड वेस्ट से सही ढंग से निजात पाना भी दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है

फूड वेस्ट यानी खाने का वो हिस्सा जो हम या तो इस्तेमाल नहीं करते या जो इसके लायक ही नहीं है. हाल ही में जापान के रिसर्चरों कोटा युया और सकाई माशिदा ने बेकार खाने से सीमेंट बनाने में कामयाबी हासिल की है. इन्होने ऐसी तकनीक विकसित की है जो बेकार खाने को सीमेंट में बदल देता है और इसे मकान बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है दिलचस्प बात यह है कि इस सीमेंट को आप खा भी सकते हैं.

इस प्रक्रिया में बना सीमेंट सिर्फ बेकार खाने से बना है और इस सीमेंट की तनाव सहन करने की क्षमता और लचीलापन आम सीमेंट की तुलना में चार गुना अधिक है. रिसर्चर माचिदा और सकाई ने कहा कि वो इस सीमेंट से वो ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करने की उम्मीद करते हैं

खराब हो जाने पर कूड़े के ढेर में फेंका गया खाना वातावरण में बहुत सारी मीथेन गैस छोड़ता है, जोकि पर्यावरण पर बेहद बुरा प्रभाव डालती है वहीं दूसरी ओर सीमेंट के उत्पादन के दौरान दुनिया भर की 8 फीसदी कार्बन डाईऑक्साइड का कुल उत्सर्जन होता है. सकाई और माशिदा का मानना है कि उनकी तकनीक से विकसित सीमेंट अब कंक्रीट की जगह ले सकती है, जिससे मीथेन गैस से संबंधित समस्याओं को कम किया जा सकता है जो कि लैंडफिल में खाद्य अपशिष्ट उत्सर्जित करता है

सकाई और माशिदा ने तरीका विकसित किया जिसमें पाउडर में तब्दील खाद्य पदार्थो के बुरादे को गर्मी दे कर जमाया जाता है. तीन चरणों वाली प्रक्रिया में सुखाना, पाउडर बनाना और जमाने का काम एमेजॉन पर बिकने वाले आम मिक्सरों और कंप्रेसरों का इस्तेमाल कर किया जा सकता है.

कई महीनों की नाकामी के बाद उन्होंने देखा कि वे तापमान और दबाव में थोड़ा बदलाव कर सीमेंट का जोड़ हासिल कर सकते हैं. सकाई ने बताया, “हर तरह का फूड वेस्ट अलग तापमान और दबाव के स्तर की मांग करता है और ग्लोबल वार्मिंग यही सबसे बड़ी चुनौती थी.”

उन्होंने चाय पत्ती, नारंगी, प्याज के छिलके, कॉफी, कैबेज और यहां तक कि लंचबॉक्स में बचे रह जाने वाले खाने से सीमेंट बनाई है. रिसर्चरों ने इसमें मसालों का इस्तेमाल कर इनका स्वाद बदला और देखा कि सीमेंट का रंग, खुशबू और स्वाद लोगों को काफी लुभाने वाला है. इन चीजों को अगर कोई खाना चाहे तो इन्हें टुकड़ों में तोड़ कर उबालना होगा.

सीमेंट को वाटरप्रूफ और चूहों या कीड़ों का आहार बनने से रोकने के लिए इस पर जापानी लाख की परत लगाई जा सकती है.

माशिदा का कहना है कि “हमारी अंतिम आशा प्लास्टिक की जगह लेने वाला सीमेंट बनाना है और साथ ही सीमेंट से बनी ऐसी चीजें जिनका बोझ पर्यावरण पर ना पड़े.”

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