अरविंद केजरीवाल अन्य प्रदेशों के चुनावों में बिजली की सस्ती दरों, मुफ्त पानी और शिक्षा तंत्र में हुए सुधारों का दावा कर जनता को आकर्षित करने के प्रयास में रहते हैं लेकिन वास्तविकता में दिल्ली की हकीकत कुछ और ही है।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को प्रभावित करने के लिए लोक लुभावने वादों की एक लंबी झड़ी लगाई और वह अपने मकसद में सफल भी हुए।
सरकार बनी वादे दावों में परिवर्तित हुए लेकिन इन दावों का यथार्थ क्या है उससे लोग अनभिज्ञ हैं।
दावों को इतनी मजबूती और सफाई के साथ पेश किया जाता है कि वह हकीकत से दिखते हैं।
इन दावों को सच साबित करने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापन जनता को दिखाए जाते हैं। सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों में भी इन विज्ञापनों को बढ़ चढ़कर जनता के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।
बहुत दुख का विषय है कि इन विज्ञापनों पर आने वाला खर्च को दिल्ली की जनता अपने जेबों से देने पर विवश है।
दिल्ली सरकार दूसरे राज्यों में चुनाव के दौरान कहती है दिल्ली में सबसे सस्ती बिजली है।
यह रहा दिल्ली के घर का बिल उसको जो रेट लग रहा है वह देखिए, 9 रुपए/ यूनिट।
इससे भी बड़ी तकलीफ़ यह है कि हम सिर्फ़ अपने घर का मंहगा बिल ही नहीं दे रहे बल्कि इनके राजनीतिक वोट बैंक को दी जाने वाली फ़्री बिजली और पूरे भारत में केजरीवाल जी के द्वारा दिखाए जाने वाले झूठे विज्ञापनों का खर्च भी उठाने को विवश हैं।
भले ही केजरीवाल अपने झूठ को स्थापित करने और झूठे दावों का प्रचार प्रसार करने में अभी तक सफल रहे हों, लेकिन झूठ की उम्र भोत छोटी होती है इसका उन्हें आभास करने के लिए जनता कि जागरूकता ही काफी है।
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जनता को केजरीवाल के विज्ञापन जाल से बहार आना होगा और अपने साथ हो रहे छलावे को समझना होगा।