55 दिन 24 घंटे अंडो की निगरानी के बाद भी गाँव वाले हैं, दुखी और मायूस !

ग्रामीण पिछले 55 दिनों से दो सारस के अंडो की देखभाल में दिलो जान से जुटे हुए थे, लेकिन अब ये ग्रामीण बेहद दुखी और मायूस हैं और उनके इस दुःख का कारण है, सारस पक्षी के अंडों का नष्ट हो जाना।

wild pig destroys crane eggs

गुजरात के एक गांव गणसर के ग्रामीण इन दिनों बेहद दुखी और मायूस हैं और उनके इस दुःख का कारण है, सारस पक्षी के अंडों का नष्ट हो जाना।

दरअसल ये ग्रामीण पिछले 55 दिनों से दो सारस के अंडो की देखभाल में दिलो जान से जुटे हुए थे,जिसके लिए इन्होनें एक आर्टिफिशियल वेटलैंड भी बनाया हुआ था।

गणसर के ग्रामीणों ने यह वेटलैंड करीब एक एकड़ भूमि पर बनाया हुआ था और इस वेटलैंड पर निरंतर पानी की सप्लाई की जा रही थी।

ताकि सारस का जोड़ा वहां मौजूद रहे और अंडो पर कोई जंगली जानवर हमला न कर दे या फिर कुत्ते खेत में अंडो तक ना पहुंच सके और सारस के ये अंडे सुरक्षित रहें।

ग्रामीण स्वंय भी सारस के इन अंडों की चौबीसों घंटे निगरानी कर रहे थे, खासकर गाँव के बच्चे जो बेहद उत्साहित होकर इस इलाके में गश्त करने में लगे हुए थे।

लेकिन गणसर निवासियों का दिल उस समय टूट गया जब एक सुबह उन्होंने देखा कि सारस का जोड़ा वहां नहीं था जहां उसके अंडे थे और वो अंडे भी घोंसले से गायब थे।

गाँव के सरपंच भोजजी ठाकोर ने बताया कि गाँव वालों घोसले के आस-पास जानवरों के पैरों के निशान देखे जिस से उन्होंने अनुमान लगाया कि वंहा जंगली सुअर आए थे।

ग्रामीणों ने जंगली सूअरों के पैरों के निशान का पीछा किया और दो खेतों को घेर लिया,लेकिन अंडे कहीं नहीं मिले।

अंडे टूटने की खबर से पूरा गांव सदमे में है, विशेषकर वो बच्चे जो सारस के इन अंडो की सुरक्षा के लिए गश्त कर रहे थे।

एक अन्य ग्रामीण कैलाश ठाकोर ने बताया कि सभी ग्रामवासी इन अंडो के समय से फूटने का इंतजार कर रहे थे,लेकिन अंडो का इस प्रकार नष्ट होना सबके लिए बहुत दुखद था।

ग्रामीणों के अनुसार सारस द्वारा रखे गए अंडों को खराब होने या नुकसान से बचाने के लिए ग्रामीण उस जगह पर मशीन से फसलों की कटाई नहीं करते थे जहां सारस के जोड़े आते थे।

प्रकृति के बेहद निकट रहने और उस से लगाव के कारण ग्रामीणों को यह आभास था कि सारस का जोड़ा उस स्थान पर अंडे देगा इसलिए उस स्थान को सुरक्षित करने का फैसला ग्रामीण पहले ही ले चुके थे।

यह बात गंभीर है कि सारस एक लुप्तप्राय प्रजाति है और गुजरात वन विभाग की 2010 में हुई जनगणना के अनुसार उस समय गुजरात में सारस की संख्‍या 1,900 थी।

हालांकि पिछले दशक में कोई औपचारिक गणना अभी तक नहीं की गई है लेकिन यह माना जाता है कि सारस पक्षी की संख्या में गिरावट आई है और अब ये मुश्‍किल से 600 ही बचे हैं।

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