ठाकुर रमापति सिंह: स्वतंत्र सेनानी से मंत्री और सांसद बनने तक का सफर

ठाकुर रमापति सिंह का जन्म 1912 में हरनाथपुर गांव, पक्रीदयाल अंचल,  मोतिहारी, बिहार में हुआ था। उनके ठाकुर रमापति सिन्हा के नाम से भी जाना जाता था। रमापति के पिता का नाम श्री राम सूरत सिंह था।

रमापति की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय अंर्तगत 1927 में बनी साइंस कॉलेज से हुई थी।

उनकी स्कूली शिक्षा मुख्य रूप से मोतिहारी में जिला मुख्यालय में हुई थी। स्कूल के बाद, उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में प्रवेश लिया। देश इस अवधि के दौरान महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक उग्र संघर्ष देख रहा था और ठाकुर रमापति सिंह जल्द ही इस आंदोलन के बीच पटना में युवा कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे। वे स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों और प्रख्यात राष्ट्रवादियों राजेंद्र बाबू, अनुग्रह बाबू और श्री कृष्ण सिन्हा, जो बाद में बिहार में मुख्यमंत्री बने उनके संपर्क में आए।

आज़ादी से पहले, रमापति सिंह को भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा बार-बार कैद किया गया था। स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने अपनी कानून की डिग्री पूरी की, एक स्थानीय कानून अभ्यास में संक्षिप्त रूप से काम किया।

इसके बाद वे 1960 के दशक में बिहार विधान सभा के लिए चुने गए और फिर 1972 में दूसरे कार्यकाल के लिए चुने गए। राज्य विधानमंडल में इन दो लगातार कार्यकालों के दौरान उन्होंने मंत्री के रूप में कार्य किया और शिक्षा मंत्रालय और उद्योग मंत्रालय जैसे विभागों को संभाला। वह बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा के मंत्रिमंडल के सदस्य थे।

आपातकाल के बाद हुए चुनावों में, सिंह नवगठित जनता पार्टी के उम्मीदवार थे और मोतिहारी के अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीते। वह मोतिहारी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारत की छठी लोकसभा के संसद सदस्य थे।

वह अपने बाद के वर्षों में मोतिहारी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए थे।

ठाकुर रमापति सिंह की मृत्यु 12 अक्टूबर 1999 को मोतिहारी के चांदमारी में उनके घर में हुई और उनके पूर्वजों के गांव हरनाथपुर में उनका अंतिम संस्कार किया गया।

ठाकुर रमापति सिंह की पत्नी रत्नेश्वरी देवी भी 2019 में मोतिहारी के चांदमारी गांव में स्वर्गवास कर गई।

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