एक बिहारी, जो अनेकों संस्था और समूह के संस्थापक थे।
बिहार में कभी विभूतियों की कमी नहीं रही है, उन में से एक थे मौलाना सय्यद अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद, वह राजनेता होने के साथ–साथ समाज के उत्थान के लिए भी अरसों तक काम करते रहें। अबुल मुहासिन का जन्म वर्तमान बिहार के नालंदा ज़िला के पनहेसा गांव में 1880 को हुआ था, गांव में उनसे पहले और उनके बाद भी कई लोग नामी हुए हैं। उनकी पढ़ाई मदरसा सुभानिया, इलाहाबाद (प्रयागराज) से हुई।
अबुल मुहासिन के पिता का नाम सय्यद हुसैन बक्श था। अबुल मुहासिन के भाई सय्यद अहमद सज्जाद एक सूफी थे जिनका मज़ार पनहेसा शरीफ में मौजूद है। हर साल उर्दू कैलेंडर के मुहर्रम के महीने के 27 तारीक को उनके मजार पर उर्स होता है। अबुल मुहासिन ने बिहार में अंजुमन उलमा–ए–बिहार और इमारत–ए–शरिया को कायम करने ने अहम भूमिका निभाया। 1919 के समय जमीयत–उलमा–ए–हिंद की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाया। उसके बाद वह बिहार के सक्रिय राजनीति में उतरे, 1935 में अबुल मुहासिन ने बिहार में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी की स्थापना की। जिसने आज़ादी से पहले, 1 अप्रैल 1937 में बैरिस्टर मुहम्मद युनुस के नेतृव में सरकार बनाई। सरकार केवल 2 महीने ही चली और 19 जुलाई 1937 को, यानी उसी साल सरकार खत्म हो गई। उस समय बिहार के राज्यपाल मॉरिस गार्नियर हैलेट थे।
अबुल मुहासिन जुलाई 1940 से नवंबर 1940 तक जमीयत–उलमा–ए–हिंद में महासचिव भी रहे। अबुल मुहासिन ने असहयोग आंदोलन, खिलाफत आन्दोलन, सत्य ग्रह, और साइमन कमीशन के खिलाफ के आंदोलनों में बढ़–चढ़ कर हिस्सा लिया था। उन्होंने असहयोग आंदोलन के समय फतवा तर्क–ए–मवालत नामक एक किताब लिखी थी। उस किताब में अंग्रेजों के वस्तुओं को न इस्तेमाल करने के बारे में लिखा था।
अबुल मुहासिन ने बिहार के गया ज़िले में अनवारूल उलूम नमक एक मदरसा कायम किया। जिसमें बच्चे और बच्चियां मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर सकें। अबुल मुहासिन के नाम पर इमारत–ए–शरिया, बिहार ने एक अस्पताल भी बनवाया है।
उन्होंने भारत–पाकिस्तान बटवारे और मुहम्मद अली जिन्ना का खुला विरोध किया था।
23 नवंबर 1940 को उनका देहांत हो गया, उनकी कब्र उनके पैतृक गांव पनहेसा में उनके भाई के कब्र के करीब में मौजूद है।
बताया जाता है, अबुल मुहासिन ने अपनी पूरी जिंदगी में एक भी तस्वीर नहीं बनवाई या खिंचवाई।