रेलवे इंजीनियर्स रेजिमेंट्स, टेरीटोरियल आर्मी का एक अंग है जो भारतीय सेना की एक वॉलंटियर रिजर्व फोर्स है, रेलवे टेरिटोरियल आर्मी यूनिट को 1949 में टेरिटोरियल आर्मी एक्ट, 1948 के तहत एक सहायक बल के रूप में बनाया गया था
इसका उद्देश्य संकट के समय रेलवे कम्यूनिकेशन को बनाए रखना है और इसी के साथ शांति के समय देश में आवश्यक रेलवे ट्रांसपोर्टेशन को बनाए रखना है, टेरिटोरियल आर्मी में पूर्णकालिक सैनिक नहीं होते हैं लेकिन इसमें ऐसे लोग वॉलंटरी के आधार पर शामिल होते हैं जो पहले से ही किसी न किसी पेशे से जुड़े होते हैं
अमूमन ऐसे लोग टेरीटोरियल आर्मी में शामिल हो कर हर साल दो से तीन महीने अपनी सेवाएं देते हैं ताकि युद्ध या किसी राष्ट्रीय आपदा के समय वो भारतीय सेना की मदद कर सकें. टेरीटोरियल आर्मी के दो तरह के यूनिट होते हैं – विभागीय और गैर विभागीय
हर रेजिमेंट में 23 अफसर, 46 जेसीओ और 1,081 दूसरे पदों के कर्मी होते हैं. सभी रेजीमेंटों के कर्मियों के वेतन और हर तरह के खर्च को रेल मंत्रालय ही उठाता है. 2019-20 में इन रेजीमेंटों के वेतन, सामान, हथियार और गोला बारूद, प्रशिक्षण आदि जैसे मद मिला कर कुल 14.28 करोड़ रुपए खर्च हुए थे
रेल मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि रक्षा मंत्रालय और टेरिटोरियल आर्मी के डायरेक्टोरेट जनरल की सहमति से, रेल मंत्रालय ने झांसी, कोटा, आद्रा, चंडीगढ़ और सिकन्द्राबाद में स्थित पांच रेलवे इंजीनियर प्रादेशिक सेना रेजिमेंट को भंग करने का निर्णय लिया है.
मौजूदा छह रेलवे इंजीनियर्स टेरिटोरियल आर्मी रेजिमेंट की वर्तमान में उपयोगिता की समीक्षा के लिए तीन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स और प्रिंसिपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर की एक समिति का गठन किया गया था. समिति ने रेलवे टीए रेजिमेंट के ऑपरेशन की जरूरतों का पुनर्मूल्यांकन किया और छ: में से पांच यूनिट को भंग करने की सहमति दी
इस समय कोटा, चंडीगढ़, सिकन्द्राबाद, जमालपुर, झांसी और अद्रा में इस फोर्स के छह रेजिमेंट हैं. फिलहाल सिर्फ जमालपुर वाले रेजिमेंट को छोड़ कर बाकी पांच को भंग कर दिया जाएगा. जमालपुर रेजिमेंट की उपयोगिता की भविष्य में फिर से समीक्षा की जाएगी