पान की दुकान पर खड़े थे… बात हुई और मिल गया फिल्म में काम

1938 की बात है

लाहौर की एक पान की दुकान पर खड़े प्राण (Pran) की मुलाक़ात जिस शख्स से हुई उसने उनकी किस्मत चमका दी. दरअसल, हुआ कुछ यूं था कि स्क्रिप्ट राइटर वली मुहम्मद वली पान खाने उसी दुकान पर पहुंचे जहां प्राण खड़े थे. वे एक पंजाबी फिल्म में खलनायक की भूमिका के लिए एक नौजवान की तलाश में थे. वली की नजर प्राण पर ठहर गई और वह उन्हें घूरने लगे.

वली ने प्राण से

बातचीत बढ़ाई और फिर वहीं एक छोटे से कागज पर अपना पता लिखकर प्राण को दिया और मिलने को कहा. मगर प्राण साहब ने वली मोहम्मद और उस कागज के टुकड़े को जरा भी तवज्जो नहीं दी और कहा…‘क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं?’ वली ने कहा- ‘वली’. प्राण ने हंसते हुए कहा- आधी रात को कुछ घूंट लेने के बाद हर कोई खुद को वली समझने लगता है. इतना कहकर प्राण वहां से घर की ओर चल दिए.

कुछ दिनों बाद

जब वली मोहम्मद प्राण से टकराए तो उन्होंने प्राण को फिर याद दिलाया और पूछा-क्या हुआ, तुम मिलने क्यों नहीं आए. आखिर प्राण साहब ने चिड़चिड़ाकर उनसे पूछ ही लिया-आप मुझसे क्यों उनसे मिलना चाहते हैं? जवाब में वली मोहम्मद ने कहा- फिल्म में काम करोगे? प्राण तब भी कुछ नहीं बोले लेकिन मिलने के लिए राजी हो गए. आखिरकार, जब मुलाकात हुई तो वली मोहम्मद ने प्राण को फिल्मों में काम करने के लिए राजी कर लिया. इस तरह प्राण पंजाबी में बनी अपने करियर की पहली फिल्म यमला जट में आए.

इस फिल्म के बाद प्राण

वली मोहम्मद वली को अपना गुरु मानते रहे. वैसे, प्राण ने अपने पिता को यह नहीं बताया था कि वह शूटिंग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर था कि उनके पिता को फिल्मों में काम करना पसंद नहीं आएगा. जब अखबार में उनका पहला इंटरव्यू छपा था तो उन्होंने अखबार ही छुपा लिया, लेकिन फिर भी उनके पिता को मालूम चल ही गया. प्राण के फिल्मों में काम करने के बारे में जानकर पिता को भी अच्छा लगा था जैसा कि प्राण ने कभी नहीं सोचा था.

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here