“उद्गार: मन के” अलका सिंह द्वारा लिखी कविताओं का संग्रह है, जिसमें खुशी के पलों से लेकर दुख की बातों और हंसी की फुहारों तक सभी एहसासों को अच्छे से पिरोया है।
कहने को तो ये कविताएं छोटी है, परंतु गहरी है, और हम सभी को अपने जीवन के कुछ खास एहसासों को याद दिलाती हैं।
लेखिका ने इन सुंदर कविताओं को हिंदी में लिखा है और अपनी किताब को बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी के लिए अनुकूल बनाया है, जिससे हम अपनी मातृभाषा में कविताएं पढ़ सके।
हालांकि इस किताब की कविताओं के इतर इस किताब का पब्लिश होना भी अपने आप में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का सूचक है।
अंग्रेजी स्कूलों ने भारतीय लोगों के लिए करियर में नए अवसर तो दिए लेकिन वहीं भारतीय भाषाओं को काफी नुकसान भी पहुंचाया है, इसका सबसे ज्यादा खामियाजा हिंदी, तमिल, तेलुगु आदि जैसी भारतीय भाषाओं के लेखकों को उठाना पड रहा है।
जिससे उनकी आय काफी कम हुई है। आलम यह है कि इंटरनेशनल बुकर प्राइज विजेता गीतांजलि श्री को भी यह प्राइज मिलने से पहले बहुत ही कम लोग जानते थे।
जबकि उन्होंने अपनी नोवेल रेत समाधि हिंदी में ही लिखी थी। हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में लेखन की स्तिथी और भी बुरी है।
इसका एक मुख्य कारण भारतीय भाषाओं में किताबों का कम पब्लिश होना भी है, और इसके लिए देश के पारंपरिक पब्लिशिंग हाउस भी जिम्मेदार है।
जिन्होंने भारतीय भाषाओं की किताबों को ज्यादा पब्लिश नहीं किया या उनकी अच्छी मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन नहीं किया।
इसके अलावा विदेशी पब्लिशिंग हाउस भी इस नुकसान के जिम्मेदार है जो फेमस लेखकों को ही पब्लिश करते है , उसमे भी अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
नए और उभरते हुए लेखकों के लिए तो चुनौतियां और भी ज्यादा है।
इन्ही सारी समस्याओं के चलते दीपक यादव ने गुरुग्राम में बिगफूट पब्लिकेशंस की शुरुआत की थी, जो अंग्रेजी के अलावा हिंदी, तमिल, बांग्ला, तेलुगु आदि सभी भारतीय भाषाओं में भी किताबों को सेल्फ पब्लिश कराता है।
बिग्फूट के साथ नए और युवा लेखक भी अपनी मनचाही भाषा में किताब को पब्लिश करा सकते है। बिगफूट न सिर्फ ऑफलाइन हार्डकॉपी पब्लिश करता है बल्कि ई- बुक और ऑडियोबुक फॉर्मेट में भी किताबों को पब्लिश करता है।
“उद्गार : मन के” भी उन्ही 5000 में से एक किताब है जो बिगफूट पब्लिकेशंस ने अभी तक पब्लिश की है।
“उद्गार : मन के” कविता संग्रह की लेखिका अलका सिंह बताती है की उनका हिंदी और कविता प्रेम तो बचपन से ही था और उनकी दिली इच्छा थी कि किसी दिन अपनी किताब पब्लिश कराए परंतु चुकी यह उनकी पहली किताब थी इसलिए उनकी इससे पहले कोई ख्याति नहीं थी, जिस वजह से उनकी किताब पब्लिश नहीं हो पा रही थी, ऐसे में उन्हें बिगफूट पब्लिकेशंस के बारे में पता चला जिससे कुछ ही दिनों में उनकी किताब पब्लिश हो गई।
भारतीय भाषाओं के सामने एक चुनौती डिस्ट्रीब्यूशन की भी है। क्यों की भारतीय भाषाओं के अधिकतम पाठक गांवों और छोटे शहरों में रहते है, जहां के पाठक पढ़ना तो चाहते है लेकिन वहां अक्सर बुक स्टोर नहीं होते है या सिर्फ कुछ चुनिंदा फेमस किताबे ही मिल पाती है।
ऐसे में बिगफूट पब्लिकेशंस ने एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म के साथ मिलकर अपनी किताबों को दूर दराज के गांवों तक पहुंचाया है।
भारतीय भाषाओं का साहित्य किफायती दामों में लोगो को उपलब्ध हो जाए इसके लिए इन्हें ई- बुक फॉर्मेट में भी ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है, जहां पाठक मात्रा ₹10 में भी ई-बुक डाउनलोड करके, आसानी से तुरंत ही अपने फोन, टैबलेट, किंडल आदि पर पढ़ सकते है।
हालांकि इतना काफी नहीं है, अगर हम भारतीय भाषाओं को संरक्षित रखना चाहते है तो हमें भारतीय भाषाओं के लिखे साहित्य को खरीदना चाहिए।
इन्ही भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए बिगफूट पब्लिकेशंस लेखन को बढ़ावा देना चाह रहा है। बिगफूट के संस्थापक दीपक यादव बताते है की वे भारत की प्रमुख भाषाओं जैसे हिंदी, तमिल, तेलुगु, बांग्ला, मराठी आदि के अलावा हमारी जो क्षेत्रीय बोलिया है, जैसे मारवाड़ी , हरयाणवी, अवधि, बुंदेलखंडी आदि में भी लोग साहित्य लिखे, बिगफूट पब्लिकेशंस उन्हे पब्लिश करने में पूरी मदद करेगा। तो देर किस बात की, अगर आप भी कविता, कहानी, लोकगीत, नोवेल आदि लिखते है, तो उन्हें आज ही पब्लिश कराए और देश के कौने कौने तक अपनी पहुंच बनाए और साथ में एक अच्छी आय भी कमाए